नीचे दिया गया गोधन गीत का प्रचलन बुलंदशहर जिले के गंगा किनारे पर बसे गुर्जरों के गांवों में
हैं| गीत में गोधन के अलावा मांडू (ग्वालो के आंचलिक देवता) , राधिका (राधा) और भोजला (भोज) का भी ज़िक्र हैं| मांडू एक ग्वाला था जिसका पेट फाड़ कर क़त्ल कर दिया गया था, गंगा के किनारे इसका मंदिर बना हुआ हैं| राधिका कृष्ण की प्रेमिका राधा हैं| भोजला प्रसिद्ध गुर्जर प्रतिहार सम्राट भोज प्रतीत होता हैं, जिसे गुर्जरों अपने इस लोक गीत में स्थान दिया हैं| “कहाँ रजा भोज कहाँ गंगू तेली” लोक कहावत का प्रसिद्ध भोज भी यही गुर्जर-प्रतिहार सम्राट हैं|लेकिन जाति और इतिहास से परे पढें यह सुन्दर गीत अपनी निराली मौलिकता में |
डॉ सुशील भाटी
(लेखक राजकीय महाविधालय लक्सर,
हरिद्वार में इतिहास विभाग के प्रवक्ता हैं|
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गोधन गीत
गोधन माडू रे तू बड़ों
तोसू बड़ों ना रे कोये
गोधन उतरो रे पार सू
उतरो गढ़ के रे द्वारे
कल टिको हैं रे जाट क
तो आज गूजर के रे द्वारे
उठके सपूती रे पूज ल
गोधन ठाडो रे द्वारे
ठाडो हैं तो रे रहन द
गौद जडूलो रे पूते
गोधन पूजे राधिका
भर मोतियन को रे थारे
एक जो मोती रे गिर गयो
तो ढूंढे सवरे रे ग्वारे
कारी को खैला बेच क
ओझा लूँगी रे छुटाए
इतने प भी न छुटो
तो बेचू गले को रे हारे
कारी-भूरी रे झोटियाँ
चलती होड़ा रे होडे
कारी प जड़ दू रे खांकडो
भूरी प जड़ दू रे हाँसे
कैसो तो कई य रे भोजला
कैसी वाकि रे मोछे
भूरी मोछन को रे भोजला
हिरन सिंगाडी रे आँखे
बंगरी बैठो रे मैमदो
मुड मुड दे रो रे असीसे
अजय विजय सुरेश इतने बाढियो
गंग-जमन के रे असीसे
छोटे-बड्डे इतने रे बाढियो
गंग-जमन के रे नीरे
(स्त्रोत गोधन गीत- जैसा श्री नरेश नागर एवं श्री रोहित नागर निवासी ग्राम: मडैय्या फतेहपुर, जिला: बुलंदशहर ने डां सुशील भाटी को बताया)
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